मचलती कलम
कुछ अनछुए पल,कटोरी यादों की और भावनाओं का संगम..
Labels
शायरी
कुछ कविताएँ
Articles
Showing posts with label
शायरी
.
Show all posts
Showing posts with label
शायरी
.
Show all posts
Wednesday, September 7, 2016
कोरा मैं
कुछ एहसास
पन्नों
में छुपाकर और कोरा हो गया मैं |
लो फिर वही ख़्वाब देखते देखते सो गया मैं ||
© सार्थक सागर
Tuesday, March 29, 2016
आशियाँ
दिल के टुकड़े समेट फिर से बनाया है एक आशियाँ |
जो अब के टूटा तो कोई वजूद भी ना रहेगा |
©सार्थक सागर
Thursday, November 5, 2015
सितमगर
हर रात सोचता है दिल सिर्फ़ तुम्ही को..
है तो मेरा पर मुझपे ही सितम करता है..
©सार्थक सागर
Thursday, August 6, 2015
याद रोग
कुछ रोग लाइलाज़ ही बेहतर हैं, उन्हें रहने दो..
उनकी यादों के रोग का इलाज़ ना निकालो..
©सार्थक सागर
आँखें शराबी
आज कल हर नाम में तेरा नाम नज़र आता है..
शायद मेरी आँखें भी मेरी तरह शराब पीती हैं..
© सार्थक सागर
Wednesday, July 29, 2015
कोई साथी
सब क्यों कर दूं कोरे काग़ज़ के हवाले..
कुछ ग़म दिल के साथ भी छोड़ आया हूँ..
मेरे छूटा सो छूटा उसका कोई साथी तो हो,,
© सार्थक सागर
Monday, July 20, 2015
प्यार क्या ख़त्म होता है
खुश चेहरे के अंदर भी कुछ ग़म होता है..
दोपहर का सूखा रेत भी भीतर नम होता है..
लोग रिश्ते तोड़ते हैं कहकर मोहब्बत नहीं रही..
प्यार क्या छोड़े
जाने से ख़त्म होता है..
© सार्थक सागर
Saturday, July 18, 2015
राख मैं
तेरी रुख्सत से मिल गया है सब
ख़ाक
में..
राख पन्ने राख आँसू राख दिल और राख मैं..
© सार्थक सागर
Wednesday, July 8, 2015
आओ कुछ यूँ मिलें
आओ कुछ यूँ मिलें के जैसे मिलता है काग़ज़ रोशनाई से..
दिल में रहते हो तुम हमें डर नही लगता जुदाई से..
©सार्थक सागर
दिनों बाद लौटा हूँ
कोरे पन्ने खुली कलम इंतज़ार में थे..
बहुत दिनों बाद लौटा हूँ अपने दर पे..
© सार्थक सागर
Monday, June 29, 2015
पहचान शायर की
जान लेना मुझे पूरा का पूरा तुम..
जब मिलूँगा किसी पन्ने पे शायरी बनकर..
आख़री शायरी में तुझे खुदा लिखूंगा
जो ख़त्म हो जाएगा दर्द-ए-मोहब्बत तो क्या लिखूंगा..
वह दिन आख़िरी होगा,आख़री शायरी में तुझे खुदा लिखूंगा..
©सार्थक सागर
Thursday, June 25, 2015
अकेले क्या मैं ही बोलूं..
आज कहने को कुछ नहीं अब..
हर दिन अकेले में क्या मैं ही बोलूं..
©सार्थक सागर
Monday, June 22, 2015
इश्क़ गिरा सिरहाने से
आह गहरी पर आहट नहीं..
इश्क़ गिरा था सिरहाने से..
आधी रात तुम याद आए..
चाहे दर्द के ही बहाने से..
© सार्थक सागर
ख़त
नहीं पढ़ते आज कल वो ख़त मेरे..
डर है मेरे लफ्ज़ उनके लब ना छू लें..
© सार्थक सागर
Saturday, June 20, 2015
मेरे लम्हे मेरे पराए
बीते लम्हें बंद हैं शीशे के बक्सों में..
लिखा है बाहर कोई "हाथ ना लगाए"..
कैसी करवट लेती है जिंदगी भी..
कल के अपने लम्हे आज मेरे ही पराए..
©सार्थक सागर
Wednesday, June 17, 2015
मेरा घर भी किराए का लगता है
सुलाया नहीं अरसे से गोद में अपनी..
अपना बिस्तर पराए सा लगता है..
तेरी यादों के छाप हैं हरेक दीवार पर..
मेरा घर भी मुझे किराए का लगता है..
© सार्थक सागर
Thursday, May 14, 2015
शायरी-शराब
वह मदमस्त था ख़ुद
के लिखे मिसरे पढ़कर..
सच ही किसी शायर ने शायरी को शराब लिखा है..
© सार्थक सागर
पहली मुलाक़ात का दिन
कुछ आँसू के कतरे फिर निकलेंगे आँखों की खिड़कियों से..
तुम नहीं आती कम्बख़्त पहली मुलाक़ात का दिन आ जाता है..
©सार्थक सागर
Saturday, April 18, 2015
मुलाक़ात
मिलना है तो मिला करो मुसाफिरों की तरह..
दिल में रहने वाले अक्सर "मिल" नहीं पाते..
©
सार्थक सागर
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)