Tuesday, November 28, 2017

तोहफ़े

यूँ तो हमें अलग हुए काफ़ी साल गुज़र चुके हैं, तुम्हारी यादों पर भी वक़्त की परतें जम चुकी हैं, हाँ मगर तुम्हारे दिए कुछ तोहफे हैं जो वक़्त के परतों को हटा देती है कभी कभार। वही तोहफे जो तुमने मुझे दिए थे। कभी सोचा भी नहीं था के इन्हें संभालना इतना मुश्किल हो जाएगा। ये ना अब नुकीले हो गए हैं, कुरेदते रहते हैं पुराने ज़ख्मों को।
हर तोहफे के पास अपनी एक पूरी कहानी है जो उसे देखते ही उसकी बूढी शक्ल से बयां हो जाया करती है। अब उनकी कहानियां सुनने का शौक़ ख़त्म हो चला है। मैं उनसे दूर भागने लगा हूँ। इंतज़ार कर रहा हूँ के कब ये दम तोड़ें और मैं उन्हें दफ्न कर दूँ कहीं ठीक उसी तरह जैसे तुमने हमारे रिश्ते को उस रात के अँधेरे में दफ्न कर डाला था।
तुम्हें याद तो होगा न वह गुलाब जो तुमने मुझे पहली बार दिया था? वह पड़ा हुआ है डायरी के भीतर। उस डायरी में जब जब मैं कहानियां लिखता हूँ, वह जाग उठता है, चुपचाप मेरी कहानियां सुनता है और थोड़ा और सूख जाता है। तुम्हारे और मेरे अलावा एक वही है जिसे हमारे रिश्ते की हर सच्चाई पता है।

मुझे ऐसा महसूस होता है, जिस दिन वह डायरी पूरी भर जाएगी उस दिन वह गुलाब पूरी तरह सूख जाएगा। मैं उस दिन उसे निकल कर मिट्टी के हवाले कर दूंगा। बस उसका जो एक निशान पड़ रखा है पीले पन्नों पर वह रह जाएगा। ठीक उसी तरह जैसे तुम्हारे जाने के बाद भी एक निशान रह गया है मेरे भीतर। 

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