Saturday, June 20, 2015

मेरे लम्हे मेरे पराए

बीते लम्हें बंद हैं शीशे के बक्सों में..
लिखा है बाहर कोई "हाथ ना लगाए"..
कैसी करवट लेती है जिंदगी भी..
कल के अपने लम्हे आज मेरे ही पराए..
©सार्थक सागर

No comments:

Post a Comment