Monday, April 27, 2015

हाँ हम लिखते हैं|

लोग कहते हैं के हम “लिखते हैं”| हमें शायर, कवि, लेखक और ना जाने क्या क्या नाम दे डालें हैं लोगों ने| अलग कर दिया है नाम की दीवारों से. लेकिन हम एक ही तो हैं, सरफिरे से, थोड़े पागल,शब्दों के दोस्त,काग़ज़ के यार|
ना जाने कब शुरू होती है यारी, कब चढ़ जाता है लिखने का शौक़ और कब बन जाती है ये आदत कुछ पता ही तो नहीं चलता| एक नशा सा होता है और बस हम रह नहीं पाते| कितना अच्छा लगता है ना चन्द मिलते जुलते शब्दों से एक कविता बना देना| दिल को यूँ लगता है के बस आसमान छू लिया| धीरे धीरे प्यार और बढ़ता ही तो जाता है| वक़्त के साथ जवान होता है हमारा लेखन| कभी दर्द लिखना कभी प्यार लिखना,पर लिखना बार बार लिखना,होता ही तो रहता है|

हाँ, थोड़े अलग से होते हैं बाकी दुनिया से,कभी शांत तो कभी पूरे पागल| अक्सर सुना है कहते हुए सबको ,ये लेखक समझ में नहीं आते, कैसे आएँ दूसरों की समझ में हम खुद को भी समझ नहीं आते. जुलाहे से बुनते रहते हैं यादों की डोर से शब्दों का जाल. कभी पूरा बुनते हैं और कभी अधूरा छोड़ देते हैं| कुछ दिल मैं दर्ज़ नामों को पन्नों की सुरक्षित आलमरी में बंद कर देते हैं| कहते हैं, कोई लिखने वाला आपसे प्यार करे तो आप मरते नही हमेशा ज़िंदा होते हैं किसी किताब के पन्ने में या कभी पूरी किताब में| अपनी मोहब्बत की खूबसूरती का इज़हार करना कोई हमसे सीखे| रातें गुज़ार देते हैं उस एक चेहरे को शब्दों के रंगों से बनाते हुए एक कलाकार की तरह|
अपने दर्द हम बस अपनी डायरी के साथ बाँटते हैं, हमारी अपनी डायरी| जब आँखें रोती है तब क़लम रोती है| डायरी के पीले पन्नों में आँसुओं से मिटे हुए कुछ शब्द गवाह होते हैं हमारे दर्द के,हम दर्द में ज़्यादा जो लिखते हैं| अक्सर सड़क पे पड़े किसी ग़रीब का दर्द लिखते वक़्त आँसू निकल पड़ते हैं,हम दिल से लिखते हैं ना| सब समेटना चाहते हैं अपनी छोटी सी दुनिया में,प्यार,खूबसूरती,प्रकृति,दिल,दर्द और ना जाने क्या क्या|.
छोटी सी डायरी के भीतर भावनाओं और शब्दों की एक बड़ी दुनिया में जीते हैं| हाँ हम लिखते हैं|

हाँ हम लिखते हैं दिल का हर पहलू..
कुछ अधूरी साँसें कुछ अधूरी आरज़ू..
कुछ अटखेलियाँ आँखों की उनके..
चुनते हैं जीवन वृक्ष से यादों के तिनके..
आँसू मिलाकर कभी स्याही बनाते हैं..
फिर हंसकर सब कुछ तो लिख जाते हैं..
जिनकी रूह ज़ज़्बातों की जिस्म अल्फाज़ों का..
एक शहर है काग़ज़ पर ऐसे इंसानो का..
बहा देते हैं सब ना कुछ करते काबू..
हाँ हम लिखते हैं दिल का हर पहलू..

©सार्थक सागर



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