Wednesday, May 6, 2015

इंतज़ार तेरा

हर लम्हा मेरे मुक़द्दर ने फ़ासले बाँटे..
हर वक़्त हम तेरे मिलने की आस करते रहे..
तस्वीर जिसे आधी खिंचवाई थी तुमने..
उसी आधे में हम अपना आधा तलाश करते रहे..
वह पल जब आख़िरी बार तेरे माथे को चूमा था..
उस प्रेम गंगा का हर क्षण एहसास करते रहे..
इंतज़ार के घर में याद का कमरा लिया किराए पे..
दर्द के सिरहाने पे ज़िंदगी और ख़ास करते रहे..
ज़िंदगी लगी कुछ ज़्यादा ही लंबी तुम बिन..
ख़ुद राख होने को कुछ राख करते रहे..
©सार्थक सागर

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